Ant – A Motivational Poem | चींटी – एक उत्साहवर्धक कविता

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक लक्ष्य होता हैं और उसे पूरा करने के लिए हर व्यक्ति अपनी यथा शक्ति परिश्रम करता हैं. बहुत से लोग अपने जीवन में सफल भी होते हैं, पर बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो निराशा, दुःख और अन्य किसी समस्या की वजह से हतोत्साहित होकर, कार्य करना बंद कर देते हैं. बिना कर्म के मनुष्य जीवन संभव नही हैं. “चींटी शीर्षक” नामक इस कविता में चींटी कितनी छोटी होती हैं फिर भी अपने कार्य को बड़े मेहनत और सुचारू रूप से करती हैं. मनुष्य को भी इस नन्ही से चींटी से सीख लेनी चाहिए और खुद को अपने लक्ष्य और कार्य के प्रति समर्पित रखना चाहिए.

चींटी

चींटी को देखा?
वह सरल, विरल, काली रेखा
तक के तागे सी जो हिल-डुल
चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल
वह है पिपीलिका पाँति !!
देखो ना, किस भांति
काम करती वह संतत !!
कन-कन कनके चुनती अविरत !!

गाय चराती,
धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती,
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना सँवारती,
घर आँगन, जनपथ बुहारती !!

चींटी है प्राणी सामजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक !!

देखा चींटी को?
उसके जी को?
भूरे बालों की सी कतरन,
छिपा नही उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भय
विचरण करती, श्रम में तन्मय,
वह जीवन की चिनगी अक्षय !!

वह भी क्या देही है, तिल-सी?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल सी !!
दिन भर में वह मीलों चलती,
अथक, कार्य से कभी न टलती .

लेखक – सुमित्रानन्दन पन्त 

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