Kaka Hathrasi Ke Dohe in Hindi – इस आर्टिकल में काका हाथरसी के दोहे और काका हाथरसी का दोहा दिया हुआ है. ये दोहे समाज के कड़वे सत्य से आपका परिचय करवाती है.
प्रसिद्द हास्य कवि और व्यंगकार काका हाथरसी का जन्म 18 सितम्बर, 1906 में हाथरस, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था. इनका असली नाम “प्रभूलाल गर्ग” था. इनकी माता का नाम बर्फी देवी और पिता का नाम शिवलाल गर्ग था.
Kaka Hathrasi Ke Dohe
मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल।
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज।
अँखियाँ मादक रस-भरी, गज़ब गुलाबी होंठ,
ऐसी तिय अति प्रिय लगे, ज्यों दावत में सोंठ।
अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट।
अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख।
काका हाथरसी के दोहे
अंधा प्रेमी अक्ल से, काम नहीं कुछ लेय,
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय।
अंधकार में फेंक दी, इच्छा तोड़-मरोड़
निष्कामी काका बने, कामकाज को छोड़।
अंध धर्म विश्वास में, फँस जाता इंसान,
निर्दोषों को मारकर, बन जाता हैवान।
अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद।
अगर चुनावी वायदे, पूर्ण करे सरकार,
इंतज़ार के मज़े सब, हो जाएँ बेकार।
Kaka Hathrasi Ka Doha
अगर फूल के साथ में, लगे न होते शूल,
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाकूल।
अगर मिले दुर्भाग्य से, भौंदू पति बेमेल,
पत्नी का कर्त्तव्य है, डाले नाक नकेल।
अगर ले लिया कर्ज कुछ, क्या है इसमें हर्ज़,
यदि पहचानोगे उसे, माँगे पिछला क़र्ज़।
अग्नि निकलती रगड़ से, जानत हैं सब कोय,
दिल टकराए, इश्क की बिजली पैदा होय।
अच्छी लगती दूर से मटकाती जब नैन,
बाँहों में आ जाए तब बोले कड़वे बैन।
काका हाथरसी का दोहा
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम,
भाग्यवाद का स्वाद ले, धंधा काम हराम।
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम,
चाचा मेरे कह गए, कर बेटा आराम।
अति की बुरी कुरूपता, अति का भला न रूप,
अति का भला न बरसना अति भली न धूप।
अति की भली न दुश्मनी, अति का भला न प्यार
तू तू मैं मैं जब हुई प्यार हुआ बेकार।
अति की भली न बेरुखी, अति का भला न प्यार
अति की भली न मिठाई, अति का भला न खार।
हास्य और व्यंग्य से भरे काका हाथरसी के दोहे
अधिक समय तक चल नहीं, सकता वह व्यापार,
जिसमें साझीदार हों, लल्लू-पंजू यार।
अति की वर्षा भी बुरी, अति की भली न धूप,
अति की बुरी कूरुपता, अति का भला न रूप।
अपना स्वारथ साधकर, जनता को दे कष्ट,
भ्रष्ट आचरण करे जो वह नेता हो भ्रष्ट।
अपनी आँख तरेर कर, जब बेलन दिखलाय,
अंडा-डंडा गिर पड़ें, घर ठंडा हो जाय।
कलयुगी दोहे
अपनी गलती नहिं दिखे, समझे खुद को ठीक,
मोटे-मोटे झूठ को, पीस रहा बारीक।
अधिकारी के आप तब, बन सकते प्रिय पात्र
काम छोड़ नित नियम से, पढ़िए, चमचा-शास्त्र।
अपनी ही करता रहे, सुने न दूजे तर्क,
सभी तर्क हों व्यर्थ जब, मूरख करे कुतर्क|
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