Rahat Indori Shayari in Hindi – डॉ. राहत इंदौरी को कौन नहीं जानता है. गजल और शेरो-शायरी जिस अदा से कहते थे उसका सीधा असर हमारे दिलों पर होता था. अपने शेरो-शायरी के माध्यम से समाज और राजनीतिज्ञयों को आईना भी दिखाया करते थे.
डॉ. राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में स्वर्गीय रिफ़तुल्लाह क़ुरैशी एवं मक़बूल बी के घर चौथी संतान के रूप में हुआ. राहत साहब ने शुरूआती शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. और “उर्दू मुशायरा” शीर्षक से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की. डॉ. साहब ने 40-45 वर्षो तक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मंच पर मुशायरा किया और करोड़ो दिलों को अपना दीवाना बना दिया.
अपनी शायरी से लाखों-करोड़ो दिलों पर राज करने वाले मशहूर शायर, हरदिल अजीज श्री राहत इंदौरी का आज 11 अगस्त, 2020 ( जन्माष्टमी के दिन ) निधन हो गया. राहत साहब कोरोना वायरस ( Coronavirus ) की चपेट में आ गये थे. दिल का दौरा पड़ने की वजह से 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.
Rahat Indori Shayari in Hindi
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो.
हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते.
Shayari of Rahat Indori in Hindi
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ.
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
Rahat Indori Sher in Hindi
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
Rahat Indori Shayari 2 Lines
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है
राहत इंदौरी की शायरी
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे.
शहर क्या देखें कि हर मंजर में जले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
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