करोड़ो दिलों को अपनी शेरो-शायरी और ग़ज़ल कहने की अदा से दीवाना करने वाले डॉ. राहत इंदौरी अब हमारे बीच में नही रहे. मीडिया के अनुसार डॉ. साहब कोरोना वायरस की चपेट में आ गये थे और दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई.
डॉ. राहत इंदौरी को कौन नहीं जानता है. गजल और शेरो-शायरी जिस अदा से कहते थे उसका सीधा असर हमारे दिलों पर होता था. अपने शेरो-शायरी के माध्यम से समाज और राजनीतिज्ञयों को आईना भी दिखाया करते थे.
डॉ. राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में स्वर्गीय रिफ़तुल्लाह क़ुरैशी एवं मक़बूल बी के घर चौथी संतान के रूप में हुआ. राहत साहब ने शुरूआती शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. और “उर्दू मुशायरा” शीर्षक से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की. डॉ. साहब ने 40-45 वर्षो तक राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मंच पर मुशायरा किया और करोड़ो दिलों को अपना दीवाना बना दिया.
अपनी शायरी से लाखों-करोड़ो दिलों पर राज करने वाले मशहूर शायर, हरदिल अजीज श्री राहत इंदौरी का आज 11 अगस्त, 2020 ( जन्माष्टमी के दिन ) निधन हो गया. राहत साहब कोरोना वायरस ( Coronavirus ) की चपेट में आ गये थे. दिल का दौरा पड़ने की वजह से 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.
Best Shayari of Rahat Indori in Hindi

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो.
हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते.
Rahat Indori Shayari in Hindi
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ.

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
Rahat Indori Sher in Hindi
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है
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