Maharana Pratap | महाराणा प्रताप – एक वीर योद्धा का इतिहास

Maharana Pratap History in Hindi – महाराणा प्रताप का पूरा जीवन परिचय इतिहास, निबन्ध, चेतक की वीरता की कहानी और कविता , राजपुताना और मुगलों से सम्बन्ध की पूरी जानकारी के लिए इस पोस्ट को पढ़े.

महाराणा प्रताप की वीर गाथा और उनके आदर्श भारतीय इतिहास के पन्नो को और अधिक सुनहरा बना देते हैं. वे एक ऐसे योद्धा थे जिससे मुगलों के बड़े-बड़े सूरमा डरते थे. उनकी वीरता को सम्मान अकबर भी करता था. महाराणा प्रताप युद्ध विद्या में निपुण थे.

Maharana Pratap Biography in Hindi | महाराणा प्रताप जीवनी हिंदी में

पूरा नाम – महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
पिता – राणा उदय सिंह
माता – जयवंता बाई
पत्नी – अजबदे और अन्य 10 पत्नी
जन्म – 9 मई 1540
मृत्यु – 29 जनवरी 1597
पुत्र – अमर सिंह, भगवान दास और अन्य 17 पुत्र
घोड़ा – चेतक
राजतिलक – 1 मार्च 1572
शासन – 1572 – 1597 तक
राजघराना – सिसोदिया
धर्म – सनातन धर्म

महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में 9 मई 1540 को हुआ था. हिंदी पंचाग के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष के तीज को आता हैं. इसी दिन राजस्थान में इनका जन्मदिन भी मनाया जाता हैं. इनकी माता जैवन्ताबाई और पिता राणा उदय सिंह थे, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी. महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. इनका राज्यभिषेक गोगुन्दा में हुआ.

Name of wifes and sons of Maharana Pratap | महाराणा प्रताप की पत्नियों और पुत्रों के नाम

  1. महारानी अजबदे पंवार – अमरसिंह और भगवानदास
  2. अमरबाई राठौर – नत्था
  3. शहमति बाई हाडा – पुरा
  4. अलमदेबाई चौहान – जसवंत सिंह
  5. रत्नावती बाई परमार – माल,गज,क्लिंगु
  6. लखाबाई – रायभाना
  7. जसोबाई चौहान – कल्याणदास
  8. चंपाबाई जंथी – कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
  9. सोलनखिनीपुर बाई – साशा और गोपाल
  10. फूलबाई राठौर – चंदा और शिखा
  11. खीचर आशाबाई – हत्थी और राम सिंह

Maharana Pratap and Akbar | महाराणा प्रताप और अकबर

अकबर महराना प्रताप से बहुत डरता था क्योकि महाराणा प्रताप बहादुर एवं वीर योद्धा थे उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नही किया था तब अकबर ने महाराणा को समझाने के लिए निम्न चार दूत भेजे थे.

  1. जलाल खान कोरची
  2. मान सिंह
  3. भगवान दास
  4. टोडरमल

Maharana Pratap and Rajputana | महाराणा प्रताप और राजपुताना

डर और लालच के कारण बहुत से राजपूतों ने स्वयम को अकबर से हाथ मिला लिया था और अकबर राणा उदय सिंह को भी अपने अधीन करना चाहता था पर नही कर सका. फिर अकबर ने मानसिंह को अपनी सेना का सेनापति बनाया और टोडरमल, राजा भगवान दास सभी को अपने साथ मिला कर 1576 में युद्ध छेड़ दिया.

Haldighati War | हल्दीघाटी युद्ध

यह युद्ध 18 जून 1576 ई. में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था. इस युद्ध में मेवाड़ सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था. प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एक मात्र मुस्लिम सरदार हकीम खान सूरी थे.

इतिहासकार मानते है कि इस युद्ध में कोई विजयी नही हुआ क्योकि महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए अकबर के विशाल सेना के सामने मुठ्ठीभर राजपूत कितनी देर टिक पाते पर ऐसा कुछ नही हुआ. प्रताप की सेना ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए.

हल्दी घाटी का युद्ध कई दिनों तक चला. मेवाड़ प्रजा किले के अंदर पनाह दी गई. लम्बे समय तक युद्ध चलने के कारण प्रजा और सैनिकों के लिए अन्न और जल की कठिनाई उत्पन्न होने लगी. सबने अपना भोजन कम कर दिया, सबने महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया. इस हौसले को देख अकबर भी राजपूतों की प्रशंसा करता था. अन्न के अभाव में प्रताप यह युद्ध हार गये. युद्ध के आख़िरी दिन जोहर प्रथा को अपना कर सभी राजपूत महिलाओं ने अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया. युद्ध के एक दिन पूर्व महाराणा प्रताप को और उनकी पत्नी को नींद की दवा खिलाकर उन्हें मेवाड़ से दूर भेज दिया गया ताकि राजपुताना फिर से खड़ा हो सके.

Success and death of Maharana Pratap | महाराणा प्रताप की सफलता और मृत्यु

1579 से 1585 तक, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और बंगाल में लोगो ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह करने लगे और दूसरी तरह महाराणा भी एक बाद एक गढ़ जीत रहे थे. अकबर विद्रोहों को दबाने में उलझा रहा जिसके कारण मेवाड़ पर मुगलों का दबाव कम हो गया. इसका लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने 1585 में मेवाड़ मुक्ति के प्रयत्नों को बहुत तेज कर दिया. महराणा के सेना मुगलों पर आक्रमण करना शुरू कर दिय और 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर फिर से माहाराणा प्रताप का अधिकार स्थापित हो गया. 12 वर्ष तक संघर्ष के बाद महाराणा प्रताप ने पहले जैसा अपना अधिकार जमा लिया. मेवाड़ मुक्ति के बाद का समय मेवाड़ वालों के लिए स्वर्ण युग साबित हुआ.

परन्तु दुर्भाग्य से 11 वर्ष के बाद 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई.

Maharana Pratap and Chetak’s Anokha Sambandh | महाराणा प्रताप और चेतक का अनोखा सम्बन्ध

महाराणा प्रताप के वीरता की कहानियों में, चेतक का अपना अलग ही स्थान हैं. चेतक की फुर्ती और रफ्तार के कारण उन्होंने कई युद्धों को जीता. प्रताप चेतक को बहुत प्यार करते थे.

हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक घायल हो जाता हैं, उसी समय एक बड़ी नदी आ जाती हैं अगर चेतक उसे पार न कर पाता तो महाराणा प्रताप के जान को खतरा था. उस घायल अवस्था में चेतक ने 21 फीट चौड़ा छलांग लगाया. इस तरह चेतक के महाराणा प्रताप के प्राणों की रक्षा की. चेतक बहुत अधिक घयाल हो चुका था जिसके कारण उसने अपना दम तोड़ दिया. 21 जून 1576 को चेतक प्रताप को छोड़ दूसरी दुनिया में चला जाता हैं.

आज भी हल्दीघाटी में चेतक की समाधि है जिसे पर्यटक देखकर उसकी बहादुरी को याद करते हैं.

Chetak Poem – Chetak ki Veerta pr Kavita, Chetak Poem | चेतक की वीरता पर कविता

इस कविता को श्यामनारायण पाण्डेय ने लिखा है जोकि चेतक की वीरता पर लिखी गयी हैं. इस कविता को बच्चे बहुत पसंद करते हैं.

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में

बढ़ते नद-सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
विकराल वज्रमय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया

भाला गिर गया गिरा निसंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग

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