Jain Dharma in Hindi | जैन धर्म की पूरी जानकारी और रोचक जानकारियाँ

Jain Dharma History in Hindi – जैन धर्म एक प्राचीन धर्म हैं. अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धांत हैं. जैन ग्रंथो की अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थकर भगवान श्री ऋषभदेव द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था. जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अजैन साहित्य और खासकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं.

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

  1. ऋषभदेव- इन्हें ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है
  2. अजितनाथ
  3. सम्भवनाथ
  4. अभिनंदन जी
  5. सुमतिनाथ जी
  6. पद्ममप्रभु जी
  7. सुपार्श्वनाथ जी
  8. चंदाप्रभु जी
  9. सुविधिनाथ- इन्हें ‘पुष्पदन्त’ भी कहा जाता है
  10. शीतलनाथ जी
  11. श्रेयांसनाथ
  12. वासुपूज्य जी
  13. विमलनाथ जी
  14. अनंतनाथ जी
  15. धर्मनाथ जी
  16. शांतिनाथ
  17. कुंथुनाथ
  18. अरनाथ जी
  19. मल्लिनाथ जी
  20. मुनिसुव्रत जी
  21. नमिनाथ जी
  22. अरिष्टनेमि जी – इन्हें ‘नेमिनाथ’ भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
  23. पार्श्वनाथ
  24. वर्धमान महावीर – इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है.

Principles of Jain Dharma | जैनधर्म के सिद्धांत

जैन धर्म में अहिंसा को परमधर्म माना गया हैं. जैनधर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत कर्म हैं. महावीर जी ने बार-बार कहा है कि जो जैसे कर्म (अच्छा एवं बुरा) जैसा कर्म करता हैं उसका फल अवश्य ही भोगना पड़ता हैं. मनुष्य जो चाहे पा सकता हैं, जो चाहें बन सकता हैं, इसलिए अपने भाग्य का विधाता वह स्वयं हैं.

Jain Dharma – Ethics | जैन धर्म – आचार विचार

जैन धर्म में आत्मशुद्धि पर बल दिया गया हैं. जैन धर्म के सभी तीर्थकर क्षत्रिय कुल में हुए थे. इससे मालूम होता है कि जैन धर्म क्षत्रियों का धर्म था इसलिए आत्मशुद्धि प्राप्त करने के लिए जैन धर्म में देह-दमन और कष्टसहिष्णुता को मुख्य माना गया हैं. आजकल अधिकांश वैश्य लोग इसके अनुयायी हैं.

Seven Elements | सात तत्व

जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं –

  1. जीव – जैन दर्शन में आत्मा के लिए “जीव” शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है.
  2. अजीव – जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है.
  3. आस्रव – पुद्गल कर्मों का आस्रव करना.
  4. बन्ध – आत्मा से कर्म बन्धना.
  5. संवर – कर्म बन्ध को रोकना.
  6. निर्जरा – कर्मों को क्षय करना.
  7. मोक्ष – जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं.

Fast | व्रत

जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है. तीर्थंकर और महापुरुष इनका पालन करते है.

  1. अहिंसा – किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना. किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना.
  2. सत्य – हित, मित, प्रिय वचन बोलना.
  3. अस्तेय – बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना.
  4. ब्रह्मचर्य – मन, वचन, काय से मैथुन कर्म का त्याग करना.
  5. अपरिग्रह – पदार्थों के प्रति ममत्वरूप परिणमन का बुद्धिपूर्वक त्याग.

Interesting Facts about Jain Dharma | जैन धर्म के बारे में दिलचस्प तथ्य

  1. जैनधर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे.
  2. जैनधर्म के 23वें तीर्थकर “पार्श्वनाथ” थे, जो काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे. इन्होने 30 वर्ष की अवस्था में सन्यास जीवन को स्वीकारा. इनके द्वारा दी गयी शिक्षा निम्न हैं –
    • हिंसा न करना
    • सदा सत्य बोलना
    • चोरी न करना
    • सम्पत्ति न रखना
  3. महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम और 24वें हुए.
  4. महावीर का जन्म 540 ई. पूर्व में कुण्डग्राम, वैशाली में हुआ था. इनके पिता “सिद्धार्थ” ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थी.
  5. महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था.
  6. महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था. इन्होंने 30 वर्ष की उम्र में माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से अनुमति लेकर लेकर सन्यास जीवन को स्वीकारा था.
  7. 2 वर्षो की कठिन तपस्या की बाद महावीर को जम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान का बोध हुआ. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य) और निर्ग्रन्थ (बन्धनहीन) कहलायें.
  8. महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत (अर्ध मागधी) भाषा में दिया.
  9. महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल बने.
  10. प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी .
  11. आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गन्धर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जो जैनधर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ.
  12. जैनधर्म में ईश्वर को मान्यता नही हैं.
  13. जैनधर्म में आत्मा की मान्यता हैं.
  14. महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे.
  15. जैनधर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद हैं.
  16. जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया.
  17. खजुराहों में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासको द्वारा किया गया.
  18. जैन तीर्थकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में हैं.

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