Shaiv Dharm | शैव धर्म

History of Shaivism in Hindi – शैव धर्म के लोग भगवान शिव और उनकी अवतारों में विश्वास रखते हैं. शैवमत का आधार ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं. 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव आदि नामो से प्रसिद्ध हुए और लोग इनकी पूजा-अर्चना करने लगे. भगवान शिव के कई जगहों पर भव्य मंदिर हैं. लगो भगवान् शिव की मूर्ती और शिवलिंग दोनों की ही पूजा करते हैं.

Sage of Shaivism | शैवधर्म के संत संस्कार

  1. शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं.
  2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं. इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते.
  3. इनके यज्ञ और अनुष्ठान रात्रि में होते हैं.
  4. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं. ये चमत्कार जैसी शक्तियों में विश्वास रखते हैं.
  5. यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं.
  6. शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं.
  7. शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है.
  8. शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है.
  9. ये शरीर में भभूति और राख लगते हैं. ये तिलक भी लगाते हैं.
  10. शैवधर्म में जो ज्ञानी और उच्चकोटि के सन्यासी होते हैं, वे अपनी इन्द्रियों को हठ योग से नियंत्रित करते हैं.
  11. ये अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करने के लिए कठोर योगाभ्यास और शारीरिक पीड़ा भी उठाते हैं.

Interesting information about Shaivism | शैव धर्म के बारे में रोचक जानकारियां

  1. शैवधर्म में, भगवान शिव या शंकर की पूजा की जाती है और शिवलिंग उपासना का साक्ष्य हड़प्पा के अवशेषों से मिलता हैं.
  2. ऋग्वेद रूद्र नामक देवता का उल्लेख मिलता हैं जोकि भगवान शिव का एक अन्य नाम है.
  3. अथर्ववेद में, भगवान शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है.
  4. मत्स्यपुराण में लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मिलता है.
  5. वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है: पाशुपत, काल्पलिक, कालमुख और लिंगायत
  6. शैवधर्म में सबसे प्राचीन सम्प्रदाय पाशुपत संप्रदाय है, इसके संस्थापक लवकुलीश थे. जिन्‍हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है.
  7. पाशुपत संप्रदाय का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है.
  8. कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है. इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे.
  9. 10वीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ.
  10. दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा.
  11. नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है. जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है.
  12. पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया.
  13. एलोरा के कैलाशा मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया. यह मंदिर विशाल चट्टान को काटकर बनाया गया हैं.
  14. चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था.
  15. कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है.
  16. शैव ग्रंथो के नाम कुछ इस प्रकार हैं – श्‍वेताश्वतरा उपनिषद, शिव पुराण, आगम ग्रंथ और तिरुमुराई
  17. शैव तीर्थ इस प्रकार हैं – केदारनाथ, बनारस, रामेश्वरम, सोमनाथ, अमरनाथ, चिदम्बरम और कैलाश मानसरोवर
  18. शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है.

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