हजार मील का सफ़र भी
एक क़दम से ही शुरू होता हैं.
जब लगा था “तीर ” तब इतना दर्द ना हुआ था..
जख्म का अहसास तब हुआ, जब “कमान ” देखी अपनों के हाथ में..
कुछ दिन खामोश होकर देखना,
लोग सच में भूल जाते हैं.
कोई ताबीज ऐसा दो कि मैं चालाक हो जाऊ,
बहुत नुकसान देती हैं मुझे ये सादगी मेरी.
जो “प्राप्त” हैं वो “पर्याप्त” हैं,
इन दो शब्दों में सुख बेहिसाब हैं.
ताल्लुक कौन रखता हैं किसी नाकाम से,
लेकिन
मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं.